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विनोबा को 28 अप्रैल, 1951 के दिन पहले-पहल भूदान-यज्ञ की क्रांतिकारी कल्पना सूझी। भगवान के दिये हुए हवा, पानी और प्रकाश पर जैसे सबका अधिकार है, उसी तरह भगवान की दी हुई ज़मीन पर भी सबका एक-सा अधिकार है – इस सिद्धान्त के आधार पर विनोबा ने ज़मीन-मालिकों से ज़मीन लेकर बेज़मीनवालों को देना चाहा और इस तरह उन्हें आर्थिक दृष्टि से अपने पाँवों पर खड़ा करना चाहा। सारे भारत की जनता ने विनोबा के इस उदात्त सन्देश का अत्यन्त प्रेम और श्रद्धा से स्वागत किया। भारत के बाहर के लोगों को यह देखकर आश्चर्य होता था कि भारत में ज़मीन केवल माँगने से ही मिल सकती है। वे इस चीज़ को भी बड़े आश्चर्य और उत्सुकता से देख रहे थे कि विनोबा ने राज्य के हस्तक्षेप या कानून के बिना शांतिपूर्ण ढंग से ज़मीन की समस्या हल करने का अहिंसक मार्ग खोज निकाला। राष्ट्र के पुनर्निर्माण के इस महान कार्य की गतिविधि के समाचार हमारे दैनिक और साप्ताहिक पत्रों में हमेशा निकलते रहे। ‘हरिजन’ पत्र इसके प्रचार और प्रसार का प्रमुख वाहन रहा। प्रस्तुत पुस्तक में ‘हरिजन’ में छपे विनोबा के लेखों और भाषणों का संग्रह किया गया है, जिससे पाठकों को भूदान-यज्ञ की कल्पना, उसके आरम्भ और क्रमिक विकास का ठीक ख़याल आ सकेगा।
Author(s) : Vinoba Bhave
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